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Showing posts from June 2, 2024

ख़ाक!

 लोग यूँ ही नहीं कहते थे तुझे काफिर उन्होंने देखा था तुझे ज़रूरत बदलते ही ख़ुदा बदलते हुए  मुझे मान लेना चाहिए था सब की हिदायतों को  बदनाम ऐसे ही नहीं होते, बदनीयत, रास्तों में चलते हुए लो अब खो बैठे यक़ीं, इश्क़ कुछ इबादत सा मालूम था हमें..  जो वुज़ू करते थे कभी हमसे रूबरू होने से पहले मिलते अब भी हैं किसी से, पर मेरी ख़ल्वत पर ख़ाक मलते हुए!!  लोग यूँ ही नहीं कहते थे तुझे काफिर  उन्होंने देखा था तुझे ज़रूरत बदलते ही ख़ुदा बदलते हुए  ख़ल्वत = emptiness  #Himmilicious  4/6/24