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Showing posts from November 8, 2020

जाड़ों जैसी, तेरी याद..

सर्दियों कि धुंधली सुबह सी तेरी याद  नम करती आँखें कुछ वैसे ही  कंपकंपाते होंठ और थरथराता जिस्म  वैसे ही जैसे, जाड़े कि सुबहों में  तुम भीगे हाथ लगते थे  और हँसते थे मेरे रूस जाने पर  और सर्द रातों सी ये तेरी याद  सुनसान रातों में किटकिटाते दांतों सी, खुद ही को देती सुनाई  गर्म साँसों को फूँकती और हथेली को करती गर्म  घिसती और टांगों के बीच छुपाती  ठंडी सी नाक और  खुश्क लब  और उनमे बसी, जाड़ों जैसी, तेरी  याद.. Himadri 9 Nov 2020 @himmicious

अधूरा सा

शाख से टूटे पत्ते आ कर मेरी गोद में गिरे थे, पीले, चुरमुरे, रंगमिटे से  आज उनमे से एक पत्ता किताब के पन्नो के बीच मिल गया, भूरा, चुरमुरा, अधूरा सा, ठीक वैसा ही ठहरा जैसे वो पल ठहरा है जब बारिष से पहले  ज़ोरों कि हवा में उलझ गयी थी मेरी लटें, और सुलझाने के बहाने तुमने गालों को छुआ था मेरे, हाँ, वो पल, वैसा ही है , मटमैला, चुरमुरा और अधूरा.. Himadri 9 Nov 2020 @himmicious