तू सबका यार कैसे हो सकता है किसी से तो बेवफ़ाई कर हम ही हो रहे हैं बेवफ़ा से सोहबत में तेरी तू हमसे कभी शनासाई कर बड़े मकम्मल से थे ये वादे तेरे वस्ल के अब पेशानी पे शिकन से आने लगी है होना है तो हो जा सबका आ फिर मुझ ही से बेवफ़ाई कर
मैं दूसरों की बातों में तुझे ढूँढ रही हूँ पर हर उस शख़्स को छोड़ रही हूँ जो तेरे जाने के बाद मुझे तेरे ज़िक्र से मार रहा है मैं मर रही हूँ की तुझे खबर तो पहुँचेगी ये मेरा सब्र ही था जो अब हार रहा है मैं बहाने बना कर खिड़की में कई बार सँवार लेती हूँ बालों को अपने तेरे ग़लीचे में खिल गये हैं नए फूल कोई तो है जो दरख़्त में पानी डाल रहा है क्या ही बद्दुआ दूँ, जा हो जाए तुझे भी वो इश्क़ जो मुझे तुझसे हुआ! ज़रा नफ़रत भी तो देख उसकी जो तेरा यार रहा है मैं हर शख़्स को छोड़ रही हूँ ! जो मुझे तेरे ज़िक्र से मार रहा है