ज़रा नज़ाकत से तो छोड़ के जाते
हम कभी ना कभी तो तुम्हारे थे
बड़ी आसानी से मुड़े और चले गये उठ कर
मुझे मुग़ालतें बड़े सारे थे
ये ख़त, ये कंगन, ये किताबें, ये बालियाँ
सब यूँ ही पड़े हैं दराज में बिखरे
तेरे क़िस्से, कहानी, बातें और यादें
सब यूँही खड़े हैं रातों में सिमटे
मैं अब भी तेरी तस्वीर देख कर मुस्कुरा देती हूँ
मैं अब भी टूट जाती हूँ की कभी तो कहीं से तू आ जाये
यार तू ही तो था मेरा अपना, यार तू तो ना बदलता,
मुझे तुझसे ही गिले सारे थे
ज़रा नज़ाकत से तो छोड़ के जाते
हम कभी ना कभी तो तुम्हारे थे
HB
23/03/2024
@himmilicious
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