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Showing posts from March 10, 2024

बुकमार्क

मैं, किताबें, तुम और तुम्हारे साथ बिताया हुआ वक़्त.. जहाँ न तुम कुछ बोलते थे न मैं कुछ बोलती थी, तुम चुपचाप एक कमरे में बैठे हुए अपना काम करते रहते थे और मैं आते जाते अपनी आधी कॉफी तुम्हारी टेबल पर रख जाती थी! मेरे लिए वही सबसे खूबसूरत पल हुआ करते थे जहाँ हम कुछ नहीं बोलते थे लेकिन दिल इस बात से शांत था कि तुम पास हो. कभी शरारत करने का मन करता तो पीछे से आकर तुम्हारे सिर पर टप से मार जाती या तुम मेरा मुंह भींच कर मेरी नाक चूम लेते! और सारा दिन खत्म होने के बाद जब बाहर जाने का मन करे तो तुम्हारा ही पजामा, तुम्हारी ही टी-शर्ट्स या तुम्हारी ही जैकेट पहन के बस ऐसे ही बिखरे बालों में चप्पल पहन कर तुम्हारे साथ निकल पड़ती थी.. मुझे तुम्हारी छोटी उंगली पकड़कर चलना बहुत पसंद था और मैं बस तुम्हें खींच कर किसी भी किताबों की दुकान में ले जाती थी.. ..तुम्हें भी पता था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, मेरे पास जो किताबों का ढेर पड़ा है, वो किताबें जो मैंने कभी नहीं पढ़ीं क्योंकि शायद मैं यह चाहती थी कि कभी तुम कोई भी एक किताब उठाओ और मुझे कुछ सुनाओ, सुनते सुनते मैं सो जाऊँ और तुम मुझे देर तक अपने सीन

रास्ते आसान कर दिये

   रास्ते आसान कर दिये  रास्ते आसान कर दिये  कभी आना,कभी जाना होता रहा  मैंने उसके रास्ते आसान कर दिये  ज़ख़्म कुछ ऐसे बना लिये ख़ुद पर  उसके भी इल्ज़ाम अपने नाम कर लिये  उसने ख़ैर तक ना पूछी जो मैंने कहा  थोड़ा वक़्त दो मैं ख़ुद को जोड़ लूँ  उसके तोड़े हुए दिल के कई इलाज कर लिये मैं थी ही नहीं उसकी रंगीन बारिश में कहीं  मैंने यूँ ही अपने ज़ख़्म लाल कर लिये  इस एक तरफ़ा इश्क़ का कोई मक़ाम नहीं होता ऊँस, अक़ीदत, ज़ुनून, सब ख़ाक कर लिये  मेरा इश्क़ मौत की और चलता जा रहा था  मैंने मौत के रास्ते आसान कर दिये कर दिया रुख़्सत महबूब को उसी की मयखाने में  हथेलीं में रखा ज़हर और ज़हर से लिखा उसका नाम  सुना है उसके नए आशिक़ ने उसके कई नाम रख दिये  ख़ैर.. मैंने उसे छोड़ दिया, ख़ुद पे इल्ज़ाम ले लिया बस उसके जाते वक़्त उसकी यादों के क़लाम पढ़ दिए फिर जो भी मिला उसके नाम का,  हम मुस्कुराए और उसको भी वही सलाम कर दिए.. Himadri 10/03/24 @himmilicious