बस वही रिश्ता मुझसे तुमसे चाहिए था,
घंटों चुप बैठे रहते, तुम अपने काँधे को मेरे घुटनों से टिका कर,
ना बात करते,
ना मैं कुछ तुमसे माँगती ना तुम्हारी कोई चाहत होती की मैं तुम्हें कुछ दूँ
तुम्हारी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फ़सा कर बैठी रहती,
या तुम्हारे चेहरे पर कहीं उँगलियाँ फेरतीं रहती..
और जैसे ही हल्की सी सिहरन भरी हवा चलती
बस आँखें बंध करके तुम्हारे सीने में छुप जाती और सब कुछ ठीक हो जाता
इस बसंत, बस ऐसा ही मुझे तुमसे रिश्ता चाहिए था जो बसंत का होता है उसके फूलों से..
Himadri
6/3/24
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